Sunday, June 27, 2010

ग़ज़ल - अहेसास-इ-हिज्र


कोई सदा (आवाज़) मेरे कानो में गूंज रही है,
शायद कोई मुझे पुकारता होगा,
जिस तरह में बेकरार हु तन्हाई में,
कोई मेरी जुदाई में भी तड़पता होगा...............० कोई सदा ०

सोंधी सोंधी खुशबु आ रही है,
किसी आखो से सावन बरसता होगा,
कही क़यामत ही न हो जाए,
ये सोच का र किसी दिल दहेलता होगा............० कोई सदा ०

कातिल लगता है ये खुशनुमा मौसम,
कोई पल पल कहीं मरता होगा,
में जी रहा हूँ ये सोच कर,
मेरी यादो के सहारे कोई जीता होगा..............० कोई सदा ०

कमबख्त बादल गरजता है यूँ,
किसी का दिल जोरो से धड़कता होगा,
बिजलिया गमो की गिरा कर,
आसमान भी अपने किये पर रोता होगा.........० कोई सदा ०



शायरी

फुर्सद नहीं है फिर भी थोडा सा वक़्त निकल लेते है,
दिल में गमों के जाम भरे है आँखों से उन्हें छलका देते है.

शायरी

लाखों में खुबसूरत आप थी, आपको ही पाने एक आस थी,
वोह आस भी टूट गयी, अब तो बस आपकी याद है,
याद क्यों आती है आपकी ? खुदा से यही फ़रियाद है.

शायरी

फुर्सद नहीं है फिर भी थोडा सा वक़्त निकल लेते है,
दिल में गमों के जाम भरे है आँखों से उन्हें छलका देते है.